ज्ञात हो कि विश्वविद्यालय द्वारा वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के साथ भेदभाव यहीं नहीं खत्म होता। इस विश्वविद्यालय में प्रवेश के इच्छुक छात्रो का एक बड़ा हिस्सा सरकारी स्कूलों से पढ़कर आता है, जहां हिंदी माध्यम में पढाई होती है। परन्तु विश्वविद्यालय अंग्रेजी माध्यम में ही प्रवेश परीक्षा कराता है जिसके कारण हिंदी माध्यम के बहुसंख्यक छात्र प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाते है। विश्वविद्यालय में जो छात्र पहुँच भी पाते हैं, उनसे इतनी महंगी फीस वसूली जाती है कि वो एडमिशन नहीं लेने या बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ने को मजबूर होते हैं। ज्ञात हो कि एयूडी छात्रों से बेहद ऊंची फीस लेता है, जो अन्य सरकारी विश्वविद्यालयों से कई गुना ज्यादा होती है। दिल्ली सरकार ने अन्य सरकारी कॉलेज खोलने के अपने वादे को पूरा नहीं की है, परन्तु इन तरीकों द्वारा वंचित छात्रों को पढ़ाई से दूर करने के सारे उपाय कर रही है।
केवाईएस से भीम ने कहा, संगठन माँग करता है कि सरकारी स्कूल के छात्रों को एयूडी में एडमीशन में वरीयता दी जाए। साथ ही, विश्वविद्यालय द्वारा ली जाने वाली अत्यधिक फीस को कम तथा प्रवेश परीक्षा हिन्दी में भी कराई जाए। इसके अलावा उन्होंने कहा कि सभी छात्रों को छात्रवृत्ति दिए जाए, ताकि वो बीच में पढ़ाई छोड़ने को मजबूर न हों। केवाईएस का मानना है कि सरकारी उच्च शिक्षण संस्थानों में सरकारी स्कूल के छात्रों का पहला अधिकार है। इस तौर पर केवाईएस मांग करता है कि एयूडी में सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए कम-से-कम 10% अक्षमता निवारक रियायत अंक (डेप्रीवेशन पॉइंट्स) का प्रावधान किया जाये और सभी तक अच्छी उच्च शिक्षा पहुंचाने के लिए नए कॉलेज खोले जाए।