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भाषण में प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वैक्सीन की खरीद का राज्यों का कोटा अब केंद्र सरकार के अधीन होगा। हालांकि, समस्त टीका उत्पादन का 25% कोटा जो कि निजी अस्पतालों के लिए निर्धारित है, वह नहीं बदलेगा। यह बहुत देर से लिया गया एक अपर्याप्त कदम है। सरकार को यह कदम लेने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उनकी कॉरपोरेट-परस्त खरीद नीति की चहूंओर से बहुत आलोचना हुई। इसके अतिरिक्त, अभी भी बड़े कॉरपोरेट अस्पतालों को वैक्सीन खरीद की छूट दी गई है, यह जानते हुए भी कि वो टीकाकरण को ऊंचे दामों पर करेंगे। निजी अस्पतालों के लोभ पर अंकुश लगाने के नाम पर केवल एक अनमना कदम लिया गया है, जिसके तहत उनके सर्विस चार्जेस को सीमित किया गया है।
ज्ञात हो कि टीकों की मुख्य खरीद केंद्र सरकार द्वारा की गई है, और तथाकथित रूप से कम कीमत पर खरीदने के बावजूद भी वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को इतना ज्यादा मुनाफा हुआ है कि महामारी के दौरान इन कंपनियों की मार्केट वैल्यू (बाजार मूल्य) दोगुना हो गयी है। यहाँ तक कि अन्य फार्मा कंपनियों ने भी जनता की इस भारी दुर्दशआ का फायदा उठाकर भारी मुनाफा कमाया है। इस प्रकार, केंद्र सरकार द्वारा टीकों की खरीद से इन फार्मा और वैक्सीन कंपनियों को सरकारी खजाने से भारी मुनाफा मिलेगा।
प्रधानमंत्री द्वारा की गई दूसरी घोषणा दीवाली तक गरीबों को राशन देने के प्रावधान से संबन्धित थी। ज्ञात हो कि मौजूदा और पिछले वर्ष में जनता को आवश्यक वस्तुओं को मुहैया करवाने के बड़े-बड़े दावों के बावजूद, केंद्र सरकार उन्हें राहत प्रदान करने में पूरी तरह से विफल रही है। महामारी और लॉकडाउन के दौरान आम मेहनतकश जनता के भूखे रहने की खबरें आती रहीं। कथित तौर पर उन्हें वितरित किया गया राशन, अभी तक भी उन तक पहुंचने में विफल रहा है। वास्तव में, सरकार की ओर से सिर्फ फोटो-खिंचवाने के लिए राशन का वितरण किया गया है, ठीक उसी तरह से मौजूदा घोषणा का मुख्य उद्देश्य लोगों को राहत प्रदान करने के बजाय बड़े-खोखले दावे करना है। इस संदर्भ में यह गौर करना महत्वपूर्ण है कि महामारी के दौरान मेहनतकश जनता द्वारा न्यूनतम आय देने सुनिश्चित करने की माँगों को उठाये जाने के बावजूद, सरकार ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया। सरकार का पूरा ध्यान अपनी तस्वीर चमकाने पर रहा, जबकि इसी बीच लोगों को जीवन और जीविका का नुकसान उठाना पड़ा है।
जन-स्वास्थ्य अधिकार अभियान केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे झूठे दावों की कड़ी निंदा करता है और यह मांग करता है कि सभी बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों, तथा फार्मा और वैक्सीन कंपनियों का सरकारी अधिग्रहण किया जाए, ताकि आम जनता को सभी जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं मुफ्त में उपलब्ध कराई जा सकें। साथ ही, सरकार की ओर से मेहनतकश जनता को न केवल राशन सुनिश्चित किया जाए, बल्कि उन्हें महामारी भत्ते के साथ-साथ न्यूनतम आय भी सुनिश्चित की जाए। यह अभियान आने वाले दिनों में केंद्र और राज्य सरकारों की जनविरोधी स्वास्थ्य नीतियों को बेनकाब करने के लिए अपना संघर्ष तेज करेगा भीम (क्रांतिकारी युवा संगठन), दिनेश कुमार (मजदूर एकता केंद्र), हरीश गौतम (सफाई कामगार यूनियन), फातिमा चौधरी (संघर्षशील महिला केंद्र), रामनाथ सिंह (ब्लाइंड वर्कर्स यूनियन), आरती कुशवाहा (घरेलू कामगार यूनियन), चिंगलेन खुमुकचम (नॉर्थ-ईस्ट फोरम फॉर इंटरनेशनल सोलीडेरिटी), ललित (आनंद पर्वत डेली हॉकर्स एसोसिएशन), पृथ्वीराज (दिल्ली मेट्रो कम्यूटर्स एसोसिएशन), हरीश (घर बचाओ मोर्चा), डॉ. माया जॉन (यूनाइटेड नर्सेज़ ऑफ इंडिया) एवं विक्रम (अनाज मंडी पल्लेदार एवं कामगार संघ) सहित जन-स्वास्थ्य अधिकार अभियान के बैनर तले।