स्वास्थ्य संकट के दौरान ‘ ब्लेंडेड मोड ऑफ टीचिंग एंड लर्निंग’ को यूजीसी द्वारा थोपे जाने की कड़ी भर्त्सना केवाईएस ने की

क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के हालिया नोटिस की कड़ी भर्त्सना करता है जिसका लक्ष्य देशव्यापी स्वास्थ्य संकट के बीच में भेदभावपूर्ण राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को लागू करना है। ज्ञात हो कि यूजीसी की 547वीं मीटिंग जो 29.05.2020 को हुई थी, उसमें यह निर्णय लिया गया था कि उच्च शिक्षण संस्थान (स्वयं कोर्स के अलावा) सभी कोर्स में 40% पाठ्यक्रम ऑनलाइन और 60% पाठ्यक्रम ऑफलाइन पढ़ा सकते हैं। इसके संबंध में एक ‘कान्सैप्ट नोट’ तैयार करने के लिए एक कमिटी का भी निर्माण किया गया। मगर, इस कमिटी में कौन लोग हैं, इसके संबंध में सार्वजनिक रूप से कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है, जिससे इस कमिटी में चुने गए लोगों और यूजीसी की मंशा पर सवाल खड़ा होता है। साथ ही, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इस कमिटी द्वारा गठित होने के लगभग 1 साल बाद कान्सैप्ट नोट तैयार किया गया, जबकि इसके विषय में यूजीसी ने मात्र 2 सप्ताह के भीतर अन्य लोगों से सुझाव मांगे हैं। यह यूजीसी अधिकारियों की दफ़्तरशाही असंवेदनशीलता को पूरी तरह से उजागर करता है।



ज्ञात हो कि यूजीसी द्वारा यह कदम उस समय उठाया जा रहा है जब पिछले एक साल के लॉकडाउन के दौरान अलग अलग तबकों से आए छात्रों के बीच बढ़ी असमानता साफ़ जाहिर हुई है। ज्ञात हो कि बहुसंख्यक छात्रों के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है। जिनके पास इंटरनेट सुविधा है भी, वहाँ स्पीड संबंधी समस्याएं हैं। 2017-18 की शिक्षा पर नेशनल सैंपल सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत के केवल 24% घरों में इंटरनेट सुविधा है। भारत में 66% ग्रामीण आबादी होने के बावजूद गांवों में केवल 15% घरों में इंटरनेट सुविधा मौजूद है। भारत की सबसे गरीब 20% आबादी में केवल 2.7% की कंप्यूटर सुविधा तक पहुंच है और मात्र 8.9% के पास इंटरनेट सुविधा है। छात्रों का बहुसंख्यक हिस्सा अपने परिवारों के साथ तंग घरों में रहते हैं। इन छोटी जगहों में ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा लेना मुनासिब नहीं है। इसके बावजूद कि ऑनलाइन क्लास ऑफलाइन क्लास का विकल्प नहीं बन सकती, पिछले साल शिक्षकों पर छात्रों के लिए ऑनलाइन मॉड्यूल बनाने के लिए दबाव डाला गया। अब इस ब्लेंडेड लर्निंग से यूजीसी का भेदभावपूर्ण असली चेहरा साफ़ जाहिर होता है। पहले जिस कदम को सामयिक रूप से लाया गया था, अब उसी को नीतिगत तौर पर लाया जा रहा है।

ब्लेंडेड लर्निंग के नाम पर लाई जा रही यह शिक्षण प्रणाली बहुसंख्यक छात्रों और अब तक उच्च शिक्षा से वंचित युवाओं के लिए औपचारिक और बेहतर शिक्षा के सभी रास्ते बंद कर देगी, क्योंकि यह पूरी तरह से अनौपचारिक शिक्षा को बढ़ावा दिये जाने की ओर पहला कदम है। सब को औपचारिक उच्च शिक्षा सुनिश्चित करने के बजाए, पिछड़ी और वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों को बेहतर शिक्षा की हर संभावना से वंचित किया जा रहा है। इस फैसले से देश-भर में विभिन्न मुक्त और दूरस्थ शिक्षण संस्थानों में पढ़ने को मजबूर छात्रों के साथ भेदभाव और भी गहराएगा, और उनके लिए औपचारिक शिक्षा के सभी रास्ते बंद हो जायेंगे।

अगर ब्लेंडेड मोड को कार्यान्वित किया जाता है, तो यह उच्च शिक्षा का रूप पूरी तरह से बदल देगा, और इससे गुणवत्तापूर्ण, औपचारिक उच्च शिक्षा तक उत्पीड़ित और हाशिये के समुदायों से आने वाले छात्रों की पहुँच और भी दुर्गम हो जाएगी। साथ ही, किसी भी शिक्षा नीति का चार पैमानों पर खरा उतरना ज़रूरी है: न्यायसंगतता, गुणवत्ता, पहुँच और क्षमता। इन सभी पैमानों पर यह कदम पूरी तरह से धराशायी होता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020, जिसको शिक्षाविदों और अन्य लोगों ने पूरी तरह से नकारा है, उसको इस कदम के माध्यम में उच्च शिक्षा में थोपे जाने का यह सीधा-सीधा प्रयास है।

ब्लेंडेड लर्निंग जैसे नामों से सज्जित करके छात्रों को उच्च शिक्षा से बाहर निकालने वाली नीतियों की केवाईएस कड़ी भर्त्सना करता है। असल में यह नीति भाजपा सरकार की पिछड़े और वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों को अनौपचारिक शिक्षा में ढकेलने की मंशा को ज़ाहिर करती है। जहाँ मौजूदा जरूरत नए कॉलेज व विश्वविद्यालय खोलकर वंचित वर्गों से आने वाले छात्रों को औपचारिक शिक्षण के माध्यम तक लाने की है, वहां ब्लेंडेड लर्निंग की नीति सरकार को सभी को सस्ती व अच्छी उच्च शिक्षा उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी से बचाना चाहती है। केवाईएस यूजीसी और भाजपा सरकार के वंचित व पिछड़े वर्गों के छात्रों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये की कड़ी भर्त्सना करता है। इस संबंध में केवाईएस ने यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय को लिखा है, और साथ ही, अन्य जनवादी संगठनों के साथ मिलकर सरकार की शिक्षा-विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन तेज़ करने का ऐलान करता है।


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