ज्ञात हो कि सफाई कर्मचारियों को दिल्ली सरकार द्वारा आश्वासन दिए गए थे कि उन्हें नौकरी से नहीं निकाला जाएगा। परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन और ठेकेदार की मिलीभगत से सफाई कर्मियों को उनकी नौकरियों से निकाल दिया गया।
सफाई कर्मचारियों की भूख हड़ताल और विरोध प्रदर्शन के बाद विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर, प्रोफेसर अश्विनी कुमार और रजिस्ट्रार, प्रोफेसर आर.के सिंह ने मीडिया के समक्ष सभी सफाई कर्मियों को नौकरी का मौखिक आश्वासन दिया कि सभी कर्मचारियों को की नौकरी पर वापस रखा जाएगा और उन्हें कल यानि 21 अक्टूबर से फिर से काम पर बुलाया जाएगा। इस प्रेस विज्ञप्ति के लिखे जाने तक विश्वविद्यालय के अधिकारी सफाई कामगारों के विषय में मीटिंग कर रहे थे। सफाई कामगारों ने प्रण लिया है कि अगर उन्हें नौकरी पर रखने का लिखित आदेश और उनकी अन्य मांगों को नहीं माना जाता है, तो वे आंदोलन को और तेज करने के लिए विवश होंगे।
यह ज्ञात हो कि 14 सितंबर 2021 को सफाई कर्मचारियों को उनकी नौकरी से निकाल दिया गया था और वे तब से लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। दिल्ली सरकार के आश्वासनों के विपरीत नए ठेकेदार को लाया जा चुका है। ज्ञात हो कि नए ठेकेदार ने सफाई कर्मियों को वापस नौकरी देने के लिए 5000 रुपए की मांग की थी। साथ ही, हर महीने वेतन में से कम-से-कम 2000 रुपए काटने की शर्त रखी थी। इसी ठेकेदार ने कुछ अन्य कर्मचारियों से 20,000 रुपए तक की मांग की थी। सफाई कर्मियों ने इस गैरकानूनी वसूली का वीडियो प्रमाण उप-मुख्यमंत्री व श्रम मंत्री को भी दिया, परंतु उप-मुख्यमंत्री और उनके अफसरों ने इस पर कुछ भी कार्रवाई नहीं की। ऐसे में, ज़ाहिर है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और ठेकेदार की मिलीभगत से हो रही धोखाधड़ी को सरकार का संरक्षण मिल रहा है। ठेकेदार के खिलाफ सख्त कदम लेने के बजाय सफाई कर्मचारियों को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कर्मचारियों ने उप-मुख्यमंत्री से इस बाबत मिलने की कोशिश की, जबकि वे उन्हें जानबूझ कर अनदेखा कर तेजी से गाड़ी में निकल गए। इस संदर्भ में यह जानना जरूरी है कि ठेकेदार ने नए सफाई कर्मियों को नौकरी देने के लिए 20,000 रुपए वसूले हैं।
कई सफाई कर्मी विश्विद्यालय में पिछले 16-17 सालों से काम कर रहे हैं, जिस दौरान कई ठेकेदार बदलते रहे हैं। यह कर्मचारी समाज के सबसे दबे हुए तबके से आते हैं और शहर के सबसे निम्नस्तरीय काम में फंसे हैं। कई मौकों पर उन्हें विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गटर साफ करने को भी मजबूर किया गया है और वे गरीबी, जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न के चक्र में फंसे हुए हैं। यहां तक कि इन सफाई कर्मचारियों को महामारी के दौरान भी काम करने पर मजबूर किया गया और इन्हें सुरक्षा उपकरण और यातायात सुविधाएं तक नहीं दी गईं। एक महिला सफाई कामगार ने कोरोना के समय अपनी जान भी गंवा दी जिसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके परिवार को कोई मुआवजा नहीं दिया है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी इन कर्मचारियों ने निरंतर काम किया है, पर इन्हें नौकरी से निकालते समय विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसके बारे में ज़रा भी फिक्र नहीं की।
ज्ञात हो कि आम आदमी पार्टी ने 2020 के अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि ठेका कामगारों को नियमित किया जाएगा। साथ ही, पूर्व श्रम मंत्री श्री गोपाल राय ने कई प्रेस कान्फ्रेसों में कहा था कि ठेका कंपनियां ठेकाकृत मजदूरों के वेतन से पैसा लूटकर और उनका शोषण करके भारी मुनाफा कमा रही हैं। उन्होंने सुझाव भी दिया था कि सरकारी विभागों और संस्थानों में ठेका प्रणाली में काम करने वाले सभी मजदूरों को सरकार सीधे तौर पर नौकरी दे। साथ ही, श्री गोपाल राय ने आईजीडीटीयूडबल्यू से लगे हुए अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली (एयूडी) के मामले में 2019 में हस्तक्षेप किया था जब वहां से सभी सफाई कर्मचारियों को नौकरी से निकाला गया था, और उन्होंने सुनिश्चित किया कि सभी कर्मचारियों को उनकी नौकरी वापस मिले।
सफाई कर्मचारियों की मांग है कि आम आदमी पार्टी अपने चुनावी वादे को पूरा करे और ठेका प्रणाली में काम कर रहे सभी कामगारों को नियमित नियुक्ति दे। कर्मचारियों ने आम आदमी पार्टी सरकार को चेतावनी दी है कि अगर वाल्मीकि सफाई कर्मियों की नौकरी उन्हें वापस नहीं दी गई तो आने वाले एमसीडी और पंजाब व दिल्ली के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को बेहद प्रतिकूल परिणाम दिखाई देंगे। सफाई कर्मचारियों ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगे नहीं पूरी की जाती हैं, तो वे आने वाले समय में दिल्ली सरकार के सभी कार्यक्रमों में काले झंडे दिखाएंगे।