दिल्ली में गूंजा सफाई कर्मचारियों के न्याय की मांग, मिला छात्रों का समर्थन...


आज़ादी के 75 साल बाद आज भी सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की गई है। सफाई के लिए अत्याधुनिक मशीनों व सुरक्षा उपकरणों की उपलब्धता के बावजूद भी कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सीवर, ड्रेनेज चैंबर और सेप्टिक टैंक की सफाई करनी पड़ती है। जिसके कारण कई सफाई कर्मचारियों को जिन्दगी से हाथ धोना पड़ता है।

समाचार एजेंसी के मुताबिक, बता दें कि घटना 11 मई, गुरुवार रात करीब नौ बजे की है। जब महाराष्ट्र के परभणी ज़िला स्थित सोनपेठ तालुका के भौचा टांडा क्षेत्र में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान एक मजदूर टैंक में गिर गया। लेकिन उसके साथी मजदूर ने उसे बचा लिया। हालांकि कुछ देर बाद दूसरा मजदूर भी गिर गया। जब चार अन्य साथियों ने टैंक में गिरे मजदूर को बचाने के लिए अंदर गए तो वे सभी टैंक के अंदर गिर गए। जिस कारण दम घुटने से 5 मजदूरों की मौत हो गई।
इसी तरह मार्च में भी पुणे में 4 सफाई कर्मचारियों की एक ड्रेनेज चैंबर को साफ करते हुए मौत हुई थी।


सफाई कर्मचारियों ने दिल्ली में किया विरोध प्रदर्शन:

क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) ने 17 मई, बुधवार को सफाई कामगार यूनियन (एसकेयू) के कर्मचारियों के साथ मिलकर महाराष्ट्र में 11 मई को हुए सेप्टिक टैंक साफ करते 5 सफाई कर्मचारियों की मौत के खिलाफ दिल्ली के कश्मीरी गेट स्थित प्रियदर्शिनी कॉलोनी में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया। इस विरोध प्रदर्शन में दिल्ली के अलग-अलग संस्थानों के सफाई कर्मचारियों के अलावा आम छात्रों ने भी शिरकत की। इस मौके पर जातिवाद, ठेकाकरण और पूंजीवाद का पुतला भी जलाया गया।


केवाईएस ने सफाई कर्मचारियों की मौत को लेकर महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार की कड़ी निंदा की है:

केवाईएस से भीम ने कहा, " हर साल सैकड़ों सफाई कर्मचारियों की सीवर, ड्रेनेज चैंबर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए मौत होती है। यह गैरकानूनी प्रथा आजादी के 75 साल बाद भी मौजूद है। यह विडम्बना है कि भारत सरकार एक ओर जहाँ चाँद पर जाने के लिए अपनी पीठ थपथपाती है, वहीं दूसरी ओर, देश में मशीनीकरण की कमी के चलते सफाई कर्मचारियों की रोज़ सीवरों में मौतें हो रही हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा की आपराधिक अनदेखी के पीछे समाज में व्याप्त जातिवादी मानसिकता और वर्गीय भेदभाव हैं। बहुसंख्यक सफाई कर्मी दलित समुदाय से आते हैं और बेहद खराब हालातों में काम करने और रहने के लिए मजबूर हैं। इन आर्थिक व सामाजिक मजबूरियों के चलते ही वे सरकारों की उदासीनता का शिकार होते हैं। कानूनी रोक के बावजूद हाथ से मैला ढोने की अमानवीय प्रथा जारी है और इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही हैं। इसके साथ ही सभी सरकारी विभागों में सफाई कर्मचारियों की कान्ट्रैक्ट आधारित नियुक्ति (ठेकाकरण) उनके लिए और भी मुश्किलें खड़ी करती है। यही नहीं, सफाई के काम के निजीकरण के चलते, मालिक और ठेकेदार सफाई कर्मचारियों को अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर करते हैं। इस समस्या के लगातार बढ़ने के बावजूद सरकारों की उदासीनता यह सुनिश्चित करती है कि ऐसे मौतें होती रहें। इसके अतिरिक्त, श्रम कानूनों के कार्यान्वयन के अभाव में निजी ठेकेदारों को शोषण की खुली छूट मिलती है और इस से पूरे देश के कामगारों का जीवन बदतर स्थिति में बना रहता है। इस घटना से न केवल सफाई कर्मचारियों, बल्कि अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत सभी कामगारों का मालिकों द्वारा अतिशोषण उजागर होता है।"


सफाई कर्मचारियों की क्या है मांगें:

केवाईएस ने माँग की है कि सफाई कर्मचारियों की मौत के लिए जिम्मेदार सभी लोगों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए, और उन्हें हत्या के लिए सख्त से सख्त सज़ा सुनिश्चित की जाए। साथ ही, मृतकों के परिवार को 1 करोड़ का मुआवजा व परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी सुनिश्चित की जाए। साथ ही यह भी मांग की है कि निगम परिषदों, निजी कंपनियों और ठेकेदारों द्वारा सफाई कर्मचारियों के शोषण को खत्म किया जाए, कर्मचारियों को स्थायी सरकारी नौकरियां दी जाएं, निजीकरण खत्म किया जाए, और सभी सफाई के काम का पूर्णतः मशीनीकरण किया जाए।

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