बता दें, कृषि समुदाय के सबसे बड़े हिस्से की समस्याएं अब भी बनी रहेंगी। ज्ञात हो कि पिछले एक साल के दौरान देखा गया कि किसान आंदोलन की छवि खराब करने के लिए "गोदी मीडिया" द्वारा निरंतर प्रयास किए गए, सरकार द्वारा प्रदर्शनकारी किसानों पर मुकदमें किए गए। उन्हें भाजपा के सदस्यों द्वारा गाड़ी से कुचला गया और दिल्ली बॉर्डर पर बैठे लगभग 700 से ज्यादा प्रदर्शनकारी किसानों की मौतें हुई। मुख्यत: छोटे-सीमांत किसानों के संघर्ष से तीन काले कानूनों का रद्द होना आंदोलन की एक बड़ी जीत है। मगर साथ ही यह भी बता दें कि इस आंदोलन को दुगुने बल से जारी रखने की जरूरत है क्योंकि कानून रद्द होने की स्थिति में भी किसानों के सबसे बड़े हिस्से छोटे-सीमांत किसानों की स्थिति वैसी ही बदहाल रहेगी जैसी इन क़ानूनों के आने से पहले थी।
किसानों के लिए लाभकारी मूल्य का मुद्दा बेहद जरूरी है। परंतु, केवल एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का कानूनी अधिकार सुनिश्चित होना ही काफी नहीं है, क्योंकि इसके बावजूद छोटे सीमांत किसानों की मुसीबतें बनी रहेंगी। छोटे-सीमांत किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए ज़रूरत है कि सरकार उनसे फसल खरीदने की पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ताकि उन्हें सस्ते में अमीर किसानों और बिचौलियों को अपनी फसल न बेचनी पड़े और किसी भी समर्थन मूल्य का फायदा उन्हें पहुंचे। साथ ही, इससे तमाम मेहनत करने वाली जनता को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये सस्ता खाद्यान्न मुहैया किया जा सकता है। इसके साथ ही, आज इस आंदोलन में खेतिहर मजदूरों को अनुसूचित मजदूरों में शामिल कर के उन्हें न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित कराना एक जरूरी मांग बननी चाहिए।
वहीं केवाईएस से भीम ने अन्य प्रगतिशील संगठनों से छोटे सीमांत किसानों के हक में सरकार खरीद सुनिश्चित करने, खेतिहर मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने, और बेहतर सार्वजनिक वितरण प्रणाली से मेहनतकश जनता को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की मांगों को उठा कर इस आंदोलन को आगे बढ़ाने की अपील की है।