यह प्रदर्शन समान स्कूली शिक्षा के लिए एक देशव्यापी अभियान का हिस्सा था और निजीकरण समर्थक 'नई शिक्षा नीति' या 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' (एनईपी), 2020 के खिलाफ आयोजित किया गया था, जो औपचारिक सार्वजनिक शिक्षा से वंचित सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के अधिकांश युवाओं को बेदखल करने का काम करेगा। प्रदर्शन में लोगों के हित में दिल्ली राज्य सरकार द्वारा एनईपी-2020 को खारिज करने की मांग उठाई गयी। इस विरोध प्रदर्शन के माध्यम से दिल्ली में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित अन्य प्रासंगिक मुद्दों को भी उठाया गया। यह ध्यान देने योग्य है कि यह प्रदर्शन पेरियार की पुण्यतिथि के दिन ही आयोजित की गई।
मुक्त और दूरस्थ शिक्षा (ओडीएल) पर एनईपी का जोर देश के शिक्षा क्षेत्र में मौजूदा असमानता और दुर्गमता पर प्रकाश डालता है और इसका समाधान करने के बजाय सार्वजनिक शिक्षा के अनौपचारिकरण की वकालत करता है जो वंचित पृष्ठभूमि और हाशिए के समुदायों के छात्रों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। यह नीति स्कूल स्तर से ही दूरस्थ शिक्षा के माध्यमों पर जोर देती है और स्कूलों में व्यावसायिक प्रशिक्षण पर इसका जोर गरीब छात्रों को शोषणकारी श्रम बाजारों और बाल श्रम में धकेलने के अलावा कुछ नहीं है। इस संबंध में, स्कूल्स ऑफ एक्सीलेंस के रूप में सरकारी स्कूलों के भीतर असमानता को बढ़ावा दिया जा रहा है।
मुक्त और दूरस्थ शिक्षा (ओडीएल) पर एनईपी का जोर देश के शिक्षा क्षेत्र में मौजूदा असमानता और दुर्गमता पर प्रकाश डालता है और इसका समाधान करने के बजाय सार्वजनिक शिक्षा के अनौपचारिकरण की वकालत करता है जो वंचित पृष्ठभूमि और हाशिए के समुदायों के छात्रों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। यह नीति स्कूल स्तर से ही दूरस्थ शिक्षा के माध्यमों पर जोर देती है और स्कूलों में व्यावसायिक प्रशिक्षण पर इसका जोर गरीब छात्रों को शोषणकारी श्रम बाजारों और बाल श्रम में धकेलने के अलावा कुछ नहीं है। इस संबंध में, स्कूल्स ऑफ एक्सीलेंस के रूप में सरकारी स्कूलों के भीतर असमानता को बढ़ावा दिया जा रहा है।
यह प्रदर्शन दिल्ली सरकार द्वारा 20 नए कॉलेज और 500 नए स्कूल बनाने के अपने चुनावी वादों को पूरा करने में घोर विफलता पर भी केंद्रित था।
क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) से दिनेश ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, "अपने ऊंचे दावों के विपरीत, सरकार ने केवल छात्रों को औपचारिक स्कूली शिक्षा से बाहर करने का काम किया है, या तो उन्हें 8 वीं कक्षा के बाद अनौपचारिक शिक्षा (पत्राचार विद्यालय) में भेज दिया जाता है, या स्कूलों को बंद और उनका विलय कर दिया जाता है। जहां एक तरफ आप सरकार प्रचार और पोस्टर बाजी पर करोड़ों खर्च करती है, वहीं दूसरी ओर पॉलिसी के माध्यम छात्रों को पत्राचार माध्यम में धकेल रही है।"
इसके अलावा उन्होंने कहा कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों के अधिकांश छात्र उच्च शिक्षा में भी बेहद खस्ताहाल अनौपचारिक मोड में धकेले जा रहे हैं। दिल्ली के सरकारी स्कूलों से उत्तीर्ण होने वाले अधिकांश छात्र दिल्ली के कॉलेजों में प्रवेश लेने में विफल रहते हैं और उन्हें स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) जैसे दूरस्थ शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इग्नू में, जो भारत में सबसे बड़ा पत्राचार संस्थान है, 2010-2018 से नौ वर्षों में दलित और आदिवासी समुदायों से आने वाले छात्रों के नामांकन में क्रमशः 248% और 172% की वृद्धि हुई है। इग्नू के समान, देश भर में ऐसे पत्राचार संस्थानों को भारत में उच्च शिक्षा के भविष्य के रूप में देखा जा रहा है, जबकि वे वंचित वर्गों के छात्रों की उच्च शिक्षा में बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी को रोकने के लिए काम करते हैं। इस संबंध में केवाईएस की मांग है कि दिल्ली सरकार लोगों के हित में एनईपी 2020 को खारिज करे। अब तक औपचारिक उच्च शिक्षा से वंचित सरकारी स्कूल के छात्रों का मौजूदा उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश सुनिश्चित करने के लिए, दिल्ली सरकार के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में शाम की कक्षाएं शुरू की जानी चाहिए। इसके अलावा, सरकारी स्कूल के छात्रों को दिल्ली राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में प्रवेश के दौरान 20% डेप्रिवेशन अंक दिए जाने चाहिए। साथ ही, सरकार को 20 नए कॉलेज और 500 नए स्कूल बनाने के अपने चुनावी वादे को पूरा करने की दिशा में तुरंत काम करना चाहिए। सरकार को 8वीं कक्षा के बाद छात्रों को पत्रचार विद्यालय में भेजना बंद करना चाहिए और स्कूली स्तर पर विशेषज्ञता की मौजूदा श्रेणियों को भंग करना चाहिए और सभी छात्रों को समान शिक्षा प्रदान करने की दिशा में काम करना चाहिए। दिल्ली सरकार को दिल्ली के शिक्षण संस्थानों में शिक्षण और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों जैसे सफाई कर्मचारियों और सुरक्षा गार्डों के लिए अनुबंध पर काम पर रखने की शोषणकारी प्रथा को समाप्त करना चाहिए। सभी शैक्षणिक संस्थानों को अनिवार्य रूप से निशक्त व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए।
वहीं एसएफआई से अनिल सेतुमानधवन ने कहा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति समाज के वंचित वर्गों के पक्ष में नहीं है। यह एक बहिष्करण नीति है और हम बिना बहिष्करण के शिक्षा चाहते हैं। एनईपी एक हानिकारक नीति है जो कठोर पदानुक्रमित संरचना बनाती है और छात्रों को विभिन्न स्तरों पर रखती है, जो समाज के वंचित और हाशिए के वर्गों के खिलाफ काम करती है।"