नई दिल्ली: क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस), आईसा, एसएफआई और अन्य प्रगतिशील छात्र संगठनों ने मिलकर 7 फरवरी, सोमवार को सभी शैक्षणिक संस्थानों को फिर से खोलने के लिए दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) के दिशा-निर्देशों के बावजूद ऑनलाइन कक्षाएं जारी रखने के खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति(वीसी) कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया। जिसके बाद पुलिस प्रशासन द्वारा प्रदर्शनकारियों को तितरबितर करने के लिए कुछ छात्रों को हिरासत में लेकर विजय नगर में छोड़ा गया।
ज्ञात हो कि यूनिवर्सिटी को फिर से खोलने के लिए प्रगतिशील छात्र संगठनों ने संयुक्त रूप से आर्ट्स फैकल्टी पर दो महीने तक धरना प्रदर्शन किया था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र समुदाय के कड़े विरोध के बावजूद ऑनलाइन शिक्षा को सही ठहराने के लिए डीडीएमए दिशा-निर्देशों का बार-बार हवाला दिया है। जहाँ दिल्ली के अन्य सरकारी विश्वविद्यालय परिसरों को फिर से खोलने के लिए अधिसूचना जारी कर रहे हैं, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रशासन डिजिटल विभाजन से जूझ रहे छात्रों की दुर्दशा के प्रति उदासीन बना हुआ है।
बता दें कि शिक्षा पर 2017-18 के नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 24% भारतीय परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है। जबकि भारत की 66% आबादी गांवों में रहती है, केवल 15% से अधिक ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट सेवाओं तक पहुंच है। सबसे गरीब 20% घरों में, केवल 2.7% के पास कंप्यूटर और 8.9% इंटरनेट सुविधाओं तक पहुंच है। इस डेटा से पता चलता है कि कैसे बड़ी संख्या में छात्रों के पास ऑनलाइन शिक्षा के लिए आवश्यक इंटरनेट या अन्य बुनियादी डिजिटल ढांचे तक पहुंच नहीं है। यहां तक कि जिन जगहों पर इंटरनेट उपलब्ध है वहां भी बैंडविड्थ और स्पीड की समस्या है। इन कठिनाइयों के अलावा, बड़ी संख्या में ऐसे छात्र हैं जो समाज के सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े तबके से आते हैं और ऑनलाइन मोड में सीखने के माहौल और उचित स्टडी मैटीरियल की कमी से जूझ रहे हैं। इन छात्रों के लिए, उन उपकरणों को वहन करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है, जिनके माध्यम से वे कक्षाओं तक पहुंच सकते हैं और अपने संदेहों पर चर्चा कर सकते हैं। देश में गंभीर आर्थिक संकट के बावजूद, जहां बेरोजगारी दर विकराल स्थिति में है और अनगिनत परिवार अपने सिर को पानी से ऊपर रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, छात्रों को उन सेवाओं के लिए फीस का भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया है जो वे विश्वविद्यालय परिसरों तक पहुंच के बिना इस्तेमाल नहीं सकते हैं। इसके अलावा, छात्रों को अपनी जेब से डेटा रिचार्ज और अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए एक अतिरिक्त राशि खर्च करने के लिए मजबूर किया जाता है।
इस अनौपचारीकरण को पहले से मौजूद अनौपचारिक शिक्षण के संदर्भ में देखने की जरूरत है, जैसे कि कोरेपोंडेंस और डिस्टेंस लर्निंग मोड (डीयू में स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग, जिसमें वंचित तबकों और मेहनतकश वर्ग के छात्र पढ़ने के लिए मजबूर हैं)।
केवाईएस ने एसओएल के छात्रों के अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। मगर, कोरोना के नाम पर यूनिवर्सिटी बंद होने के कारण संघर्ष से जीती गई महत्वपूर्ण रियायतों को भी छात्रों से छीन लिया गया है। यह अनौपचारीकरण सीधे तौर पर औपचारिक शिक्षा की पहुंच से बाहर रखे हुए छात्रों को हमेशा के लिए औपचारिक शिक्षा की परिधि से बाहर करने का जरिया है।
अधिकांश छात्रों के लिए शिक्षा पाने के लिए प्रतिकूल घरेलू वातावरण की समस्या से निपटने के लिए, ऑफलाइन शिक्षण आवश्यक है, और खराब प्रबंधन वाला ऑनलाइन शिक्षण इसके लिए एक उचित विकल्प नहीं हो सकता है। डिजिटल शिक्षा के विपरीत, कक्षा शिक्षण विभिन्न छात्रों की विविध आवश्यकताओं को साथ ले कर चल सकता है। ऑनलाइन शिक्षा के चलते कम छात्र ही कक्षाओं का हिस्सा बन पाते हैं क्योंकि विश्वविद्यालय ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर एक अच्छा पढ़ने का माहौल प्रदान करने में विफल रहा है। ऑनलाइन मोड छात्रों को एक अत्यधिक महत्वपूर्ण शैक्षणिक संसाधन, पुस्तकालय इत्यादि से भी वंचित करता है और छात्रों की पुस्तकों और स्टडी मैटीरियल तक जरूरी पहुंच में बाधा डालता है। मूल्यांकन के ऑनलाइन मोड ने भी छात्रों के भीतर भ्रम और परेशानियों को जन्म दिया है और छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
ज्ञात हो कि पिछले साल एक बेहद दुखद घटना में, डीयू के लेडी श्रीराम कॉलेज की एक युवा दलित छात्रा जो ऑनलाइन भाग लेने के लिए आवश्यक डिजिटल बुनियादी ढांचे तक पहुंच की कमी के कारण नहीं पढ़ पा रही थी, उसे अपनी जान लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। छात्रा के परिवार स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन का खर्च नहीं उठा सकता था। इस मामले को यूनिवर्सिटी प्रशासन तक पहुंचाने का प्रयास करने के बाद भी समाधान के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। ये बढ़ती असमानताएं और विश्वविद्यालय प्रशासन की उदासीनता सरकारी विश्वविद्यालयों में शैक्षिक रंगभेद से कम नहीं है।
ऐसी स्थिति न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि यह छात्रों के बीच भारी असमानता को भी बढ़ावा है। यह स्थिति मेहनतकश वर्ग के छात्रों को औपचारिक शिक्षा के दायरे से बाहर धकेल देती है। सरकार ने इस समय का उपयोग सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों पर एनईपी 2020 जैसी जनविरोधी नीतियों के प्रावधानों को थोपने के लिए किया है। विश्वविद्यालय फोर ईयर अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम (FYUP) को भी फिर से शुरू कर रहा है, जिसे पहले खारिज कर दिया गया था और छात्रों के आंदोलन के माध्यम से पीछे धकेल दिया गया था। केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों जैसे संस्थान हमेशा से ही विरोध स्वर को संगठित करने और समान और न्यायपूर्ण भविष्य के लिए जायज मांगों को उठाने का स्थान रहे हैं। डिजिटलीकरण यूनिवर्सिटी प्रशासन को छात्रों के प्रतिरोध को रोकने में सहायता करता है जो सभी के लिए समानता की मांग करता है। संगठन दिल्ली विश्वविद्यालय से तत्काल प्रशासनिक आदेश जारी करने की मांग करता है जिसमें विश्वविद्यालय परिसरों को तुरंत खोलने के लिए एक ठोस योजना हो।