दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफ़ेसर रतन लाल को 'शिवलिंग' को लेकर कथित आपत्तिजनक सोशल पोस्ट मामले में दिल्ली कोर्ट ने शनिवार को ज़मानत दे दी। इस मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली की कोर्ट ने कई टिप्पणियां कीं।
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कोर्ट ने यह कहते हुए कि भारतीय सभ्यता सभी धर्मों को स्वीकार करने के लिए जानी जाती है और इस देश में किसी भी विषय पर 130 करोड़ अलग-अलग विचार हो सकते हैं, शिक्षक रतन लाल को ज़मानत दे दी।
चीफ़ मेट्रोपॉलिटिन मजिस्ट्रेट सिद्धार्थ मलिक ने कहा, ''संरचना/प्रतीक के संबंध में ये पोस्ट काल्पनिक प्रकृति की है जो अब सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है।''
कोर्ट ने कहा, ''अभियुक्त की पोस्ट एक विवादित विषय के संबंध में व्यंग्य का एक असफल प्रयास था जिसका उलटा असर हुआ और ये एफ़आईआर हुई।''
न्यायाधीश ने भारतीय सभ्यता की सहिष्णुता और किसी विषय को लेकर अलग-अलग विचार होने पर कई बातें कहीं। कोर्ट ने कहा, ''भारतीय सभ्यता दुनिया में सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है और सभी धर्मों के लिए सहिष्णु और सबको स्वीकार करने वाली मानी जाती है। शब्दों से नफ़रत फैलाने का इरादा था या नहीं ये व्यक्तिगत दृष्टिकोण है क्योंकि ये पढ़ने वाले व्यक्ति की धारणा पर निर्भर करता है।''
कोर्ट ने कहा कि भारत 130 करोड़ से ज़्यादा लोगों का देश है और ''किसी विषय पर 130 करोड़ अलग-अलग नज़रिये और धारणाएं हो सकती हैं। किसी एक का आहत होना पूरे समूह या समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करता और आहत होने संबंधी शिकायतों को पूरे तथ्यों/परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इनके संदर्भ में देखा जाना चाहिए।''
न्यायाधीश ने अपनी इस बात को और विस्तार से समझाते हुए कहा, ''शिकायकर्ता निजी जीवन में हिंदू धर्म के गौरवान्वित अनुयायी हैं और विवादित विषय पर टिप्पणी को अप्रिय और गैर-ज़रूरी कह सकते हैं। वहीं, किसी और व्यक्ति के लिए, यही पोस्ट शर्मनाक हो सकती है लेकिन दूसरी समुदाय के लिए नफ़रत पैदा करने वाली नहीं। इसी तरह, कोई और व्यक्ति इस पोस्ट को बिना नाराज़गी से अलग नज़रिए से देख सकता है। कोई ये भी सोच सकता है कि अभियुक्त ने नतीजों पर विचार किए बिना अनुचित टिप्पणी की है।''
कोर्ट ने इस बात पर सहमति जताई कि ''अभियुक्त ने एक ऐसा काम किया है जिससे अभियुक्त के आसपास के लोगों और जनता की संवेदनाओं को देखते हुए बचा जा सकता था। हालांकि, ये पोस्ट निंदनीय है लेकिन दो समुदायों के बीच नफ़रत को बढ़ावा देने का संकेत नहीं देती।''
पुलिस की कार्रवाई को लेकर कोर्ट ने कहा कि वो सुरक्षा बलों की चिंताओं को समझते हैं क्योंकि उन्हें क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदारी दी गई है और उन्हें अशांति के ज़रा से भी संकेत पर कार्रवाई करनी होती है। हालांकि, किसी व्यक्ति को हिरासत में भेजने के लिए कोर्ट को उच्च मानक तय करने होंगे।
पुलिस ने इस मामले में पूरी तरह जांच करने के लिए शिक्षक रतनलाल की 14 दिन न्यायिक हिरासत की मांग की थी।
शिक्षक रतन लाल के वकील ने उनकी ज़मानत की अर्जी देते हुए दलील दी थी कि उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिए किसी को नहीं भड़काया। वो कोई अपराधी नहीं हैं। वो एक प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं। पुलिस उन्हें नोटिस दे सकती थी और उनके जवाब के लिए इंतज़ार कर सकती थी। संतोषजनक जवाब ना आने पर उन्हें गिरफ़्तार कर सकते थे।
वहीं, पुलिस की ओर से मौजूद अतिरिक्त लोक अभियोजक अतुल श्रीवास्तव ने कहा कि "प्रथम दृष्टया कुछ टिप्पणियां की गई हैं जिनमें सार्वजनिक शांति भंग करने की क्षमता है। इसी के अनुसार एफ़आईआर दर्ज की गई है। ऐसे शिक्षित व्यक्ति से ये अपेक्षित नहीं था। इस प्रकार की टिप्पणी के बाद वो यहीं नहीं रुके बल्कि यूट्यूब पर अपलोड किए गए विभिन्न वीडियो के माध्यम से अपना बचाव करते रहे।''
रतन लाल के वकील ने कहा कि भगवान शिव समाज के किसी एक वर्ग की संपत्ति नहीं हैं। क्या रतन लाल अपने ही लोगों को भड़काएंगे? वो खुद शिव भक्त हैं।
इसके जवाब में अतुल श्रीवास्तव ने कहा कि शिक्षक रतन लाल को ये पोस्ट करने से पहले सोचना चाहिए था। आपको ज़िम्मेदाराना तरीक़े से व्यवहार करना चाहिए था।
एसोसिएट प्रोफ़ेसर रतन लाल हिंदू कॉलेज में इतिहास पढ़ाते हैं। उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद से निकले ढांचे को लेकर कथित आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट लिखी थी। इस ढांचे को लेकर शिवलिंग या फ़व्वारा होने के दावे किए जा रहे हैं।