क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) केंद्र सरकार द्वारा कोरोनावायरस की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों पर कथन की कड़ी निंदा की है।
कोरोनावायरस की दूसरी लहर ने देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की विफलता को उजागर किया। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में अस्पतालों के बाहर और सड़कों पर लगी मरीजों की कतारों और लोगों की बेड, ऑक्सीजन और वेंटीलेटर पाने की जद्दोजहद के बारे में कई रिपोर्टें आईं। देश में कोविड केयर सेवाओं और मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी आई क्योंकि सरकार द्वारा अक्टूबर 2020 में 162 ऑक्सीजन प्लांट के लिए फंड आवंटित करने के बावजूद अप्रैल 2021 तक केवल 33 ऑक्सीजन प्लांट ही चालू किए गए थे, जब महामारी अपनी चरम सीमा पर थी। कई अस्पतालों ने ऑक्सीजन की कमी को उजागर किया और उसके कारण होने वाली मौतों का ब्योरा दिया। इसमें दिल्ली स्थित बत्रा हॉस्पिटल और जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल इत्यादि का नाम आया। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा नागरिकों पर ऑक्सीजन सिलेंडर ढूंढने, अस्पतालों पर ऑक्सीजन की कमी दर्शाने और यहां तक कि गांवों पर अपनी खराब स्थिति मीडिया से साझा करने के लिए एफआईआर दर्ज कई गईं। संवाददाताओं द्वारा कोविड मरीजों की लाशों से भरे हुए शमशानों की फोटो लेने और रिपोर्ट करने को प्रतिबंधित कर दिया गया।
जरूरी मेडिकल उपकरणों की भारी कमी और सरकार की उदासीनता के कारण ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी आम हो गई जिसके तहत उन्हें बेहद ऊंचे दामों पर बेचा गया जिससे वे मेहनतकश आबादी की पहुंच से बाहर हो गए। सरकार ने इस संकट को सुलझाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया। मीडिया द्वारा नदी के घाटों पर पड़ी लाशों की तस्वीरें इस त्रासदी को बयान कर रही थीं, जिसमें असंख्य लोग जान गंवा रहे थे। आंकड़ों के अनुसार कोविड से रोजाना कई हजार मौतें हो रही थी, कई रिपोर्ट्स का दावा है कि यह संख्या असली आंकड़ों से बेहद कम है।
केवाईएस के भीम का कहना है कि देश में इतना विकराल स्वास्थ्य संकट जिसने इतनी जानें ली, को पैदा करने के बावजूद सरकार को कोई पछतावा नहीं है। उल्टा ऐसे शर्मनाक दावे किए जा रहे हैं जो इस संकट में सरकार की विफलता को छुपाने का प्रयास कर रहे हैं। इससे सरकार का जनता विरोधी चेहरा सामने आता है, जिसने मेडिकल सुविधाओं और जीवनयापन के साधनों के अभाव में मेहनतकश आबादी को मरने की हालत में छोड़ दिया था।