ज्ञात हो कि उप-मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा उन्हें आश्वासन दिया गया कि उनकी नौकरी नहीं जाएगी और साथ ही, ठेका कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
इस संबंध में ज्ञात हो कि गत 14 सितम्बर, 2021 को विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक दिन की मौखिक सूचना पर विश्वविद्यालय में काम करने वाले सभी 38 सफाई कर्मचारियों को एकदम गलत तरीके से काम से निकाल दिया था, लेकिन सफाई कर्मचारियों के विरोध के चलते विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह आश्वासन दिया कि कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकाला जाएगा। परंतु, इसके बावजूद नई कंपनी (विशाल इंटरनेशनल) ने उनको काम पर रखने को मना किया है। इसी तरह जब 28 सितम्बर को सफाई कर्मचारी अपने दस्तावेज जमा करने कंपनी दफ्तर गए, तो उन्हें बताया गया कि उनकी न्यूनतम मजदूरी 15,912 रूपये होगी जिसमें से ईएसआई , पीएफ़ का पैसा कटने के बाद लगभग 13,500 रूपये उनके खातों में आयेंगे, और खाते में आये रुपयों में से 2000 रूपये हर महीने सुपरवाइजर को देने होंगे, यानी कर्मचारियों को लगभग 11,500 रूपये महीने दिए जायेंगे। इसके अतिरिक्त, जो राशि कंपनी और देने को कहेगी वो भी देना होगा। इस कंपनी द्वारा कर्मचारियों के साथ यह लूट बिना डर के खुलेआम चल रही है।
ज़्यादातर कर्मचारी दलित वाल्मीकि समुदाय से आते हैं, और नौकरी से निकाले जाने के कारण इन कर्मचारियों और इनके परिवारों पर संकट का पहाड़ टूट पड़ेगा। उन्हें उप-मुख्यमंत्री कार्यालय से यह आश्वासन मिला है कि उन्हें नौकरी से नहीं निकाला जाएगा, लेकिन उन्होने अपने संघर्ष को और मजबूत करने का संकलप लिया है, जबतक उन्हें स्थायी नौकरी नहीं मिल जाती और ठेका प्रथा नहीं खत्म हो जाता। देश में कामगारों के शोषण और उत्पीड़न का सबसे बड़ा कारण ठेका प्रथा है। स्थायी काम होते हुए भी, देश-भर में कामगारों को ठेके पर काम पर रखा जाना व्याप्त है। ठेका प्रथा केवल कामगारों की खराब स्थिति को बढ़ाता है और उनकी जीविका को हमेशा खतरे के दायरे में रखता है। सिर्फ ठेका प्रथा के खात्मे से ही कामगारों को न्याय मिल सकता है।