High Cut-Off के खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों का विरोध प्रदर्शन
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सोमवार, अक्तूबर 04, 2021
दिल्ली: क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) कार्यकर्ताओं ने 10वीं व 12वीं के छात्रों के साथ मिलकर सोमवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैकल्टी पर डीयू द्वारा घोषित ऊँचे एडमिशन कट-ऑफ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के दौरान कट-ऑफ लिस्ट की एक प्रति भी फूंकी गयी। ज्ञात हो कि 1 अक्टूबर को डीयू के कॉलेजों ने स्नातक कोर्सों के लिए कट-ऑफ घोषित किया है, और कट-ऑफ पिछले सालों की तरह बेहद ऊंचा है, और कुछ कोर्सों में यह 100 प्रतिशत तक पहुँच रहा है। कट-ऑफ शैक्षणिक रंगभेद ही कहा जा सकता है क्योंकि कट-ऑफ के माध्यम से बहुसंख्यक छात्र जो वंचित परिवारों से आते हैं, उन्हें उच्च शिक्षा से बाहर किया जाता रहा है।
ज्ञात हो कि हर वर्ष दिल्ली के सरकारी स्कूलों के छात्रों के बढ़ते औसतन अंक और पास प्रतिशत की चर्चा होती है। परन्तु, इसके बावजूद सच्चाई है कि सरकारी स्कूलों के बहुसंख्यक छात्रों को डीयू के रेगुलर कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढने के इच्छुक सरकारी स्कूल के छात्रों को एडमिशन लेने के लिए प्राइवेट स्कूल के छात्रों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। इस प्रतिस्पर्धा में वो ऊँचे कट-ऑफ होने के कारण हार जाते हैं और ज्यादातर छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का यहीं अंत हो जाता है। ज्ञात हो कि सरकारी स्कूल के यह छात्र ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक तौर पर वंचित वर्ग से आते हैं और स्लम और झुग्गी बस्ती में रहते हैं। इन छात्रों को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी उच्च शिक्षा की ज्यादा ज़रुरत है। इसके विपरीत हर साल उन्हें कट-ऑफ के नाम पर बाहर कर दिया जाता है। साथ ही, इस व्यवस्थागत भेदभाव पर मीडिया में बहस भी नहीं होता, कि किस प्रकार वंचित छात्रों को वंचित रखने में किस तरह कट-ऑफ की नीति काम आती है।
ज्ञात हो कि इस साल करीब 3 लाख छात्रों ने स्नातक के विभिन्न कोर्सों के लिए आवेदन किया है, परन्तु विश्वविद्यालय में बस करीब 70,000 सीटें है जिसका मतलब है कि करीब 2.2 लाख छात्रों को विश्विद्यालय और उच्च शिक्षा से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। यह वही सरकारी स्कूल के छात्र हैं जिन्होंने खस्ताहाल सरकारी स्कूल व्यवस्था में पढ़ा है। यह वो छात्र होते हैं जिन्हें कट ऑफ के नाम पर विश्वविद्यालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। यह एक तथ्य है कि दिल्ली विश्विद्यालय ने पिछले 30 वर्षो में मात्र दो-तीन कॉलेज ही खोले हैं, जिसकी वजह से सरकारी स्कूलों से पढ़कर आये गरीब छात्रो को उच्च शिक्षा में दाखिला नहीं मिल पाता है।
साथ ही इस संस्थागत रंगभेद को खत्म करने के लिए केवाईएस की कुछ मांगें है कि वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले सरकारी स्कूल के छात्रों को सरकारी विश्वविद्यालय में एडमिशन में वरीयता दी जाए और उनके लिए कम-से-कम 10 प्रतिशत डेप्रीवेशन पॉइंट्स (अक्षमता निवारण रियायत अंक) स्थापित किए जाएँ।