दिल्ली: आज प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए 3 काले कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा की है। यह पिछले एक साल से जारी किसान आंदोलन की बड़ी जीत है। इस जीत की खुशी में दिल्ली विश्वविद्यालय नॉर्थ कैम्पस में रैली का आयोजन किया गया, जिसमें क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस), अइसा व अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं ने हिस्सेदारी निभाई।
ज्ञात हो कि पिछले एक साल के दौरान देखा गया कि किसान आंदोलन की छवि खराब करने के लिए भाजपा सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किए गए, प्रदर्शनकारी किसानों पर मुकदमें किए गए, उन्हें भाजपा के सदस्यों द्वारा गाड़ी से कुचला गया और दिल्ली बॉर्डर पर बैठे लगभग 700 प्रदर्शनकारी किसानों की मौतें हुई। मुख्यत: छोटे-सीमांत किसानों के संघर्ष से तीन काले कानूनों का रद्द होना आंदोलन की एक बड़ी जीत है। मगर साथ ही, इस आंदोलन को दुगुने बल से जारी रखने की जरूरत है क्योंकि कानून रद्द होने की स्थिति में भी किसानों के सबसे बड़े हिस्से छोटे-सीमांत किसानों की स्थिति वैसी ही बदहाल रहेगी जैसी इन क़ानूनों के आने से पहले थी।
किसानों के लिए लाभकारी मूल्य का मुद्दा बेहद जरूरी है। परंतु, केवल एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का कानूनी अधिकार सुनिश्चित होना ही काफी नहीं है, क्योंकि इसके बावजूद छोटे सीमांत किसानों की मुसीबतें बनी रहेंगी। छोटे-सीमांत किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए ज़रूरत है कि सरकार उनसे फसल खरीदने की पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ताकि उन्हें सस्ते में अमीर किसानों और बिचौलियों को अपनी फसल न बेचनी पड़े और किसी भी समर्थन मूल्य का फायदा उन्हें पहुंचे। साथ ही, इससे तमाम मेहनत करने वाली जनता को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये सस्ता खाद्यान्न मुहैया किया जा सकता है।
यह घोषणा ऐसे समय पर की गई है जब कई महत्वपूर्ण राज्यों में आने वाले कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं। इस घटनाक्रम से साफ दिखता है कि किसान आंदोलन द्वारा बने दबाव के कारण सरकार ने यह फैसला लिया है। परंतु, सरकार द्वारा लिए गए यह कदम बहुत देर में लिए गए हैं और बहुत सीमित हैं। इनके द्वारा जनता को सरकार की असली मंशा के बारे में बरगलाया नहीं जा सकता। वहीं केवाईएस किसान आंदोलन की बड़ी जीत की बधाई देते हुए सभी से अपील करता है कि छोटे-सीमांत किसानों और खेत मजदूरों के ज़रूरी मुद्दों को लेकर संघर्ष तेज करें।
ज्ञात हो कि पिछले एक साल के दौरान देखा गया कि किसान आंदोलन की छवि खराब करने के लिए भाजपा सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किए गए, प्रदर्शनकारी किसानों पर मुकदमें किए गए, उन्हें भाजपा के सदस्यों द्वारा गाड़ी से कुचला गया और दिल्ली बॉर्डर पर बैठे लगभग 700 प्रदर्शनकारी किसानों की मौतें हुई। मुख्यत: छोटे-सीमांत किसानों के संघर्ष से तीन काले कानूनों का रद्द होना आंदोलन की एक बड़ी जीत है। मगर साथ ही, इस आंदोलन को दुगुने बल से जारी रखने की जरूरत है क्योंकि कानून रद्द होने की स्थिति में भी किसानों के सबसे बड़े हिस्से छोटे-सीमांत किसानों की स्थिति वैसी ही बदहाल रहेगी जैसी इन क़ानूनों के आने से पहले थी।
किसानों के लिए लाभकारी मूल्य का मुद्दा बेहद जरूरी है। परंतु, केवल एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का कानूनी अधिकार सुनिश्चित होना ही काफी नहीं है, क्योंकि इसके बावजूद छोटे सीमांत किसानों की मुसीबतें बनी रहेंगी। छोटे-सीमांत किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए ज़रूरत है कि सरकार उनसे फसल खरीदने की पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ताकि उन्हें सस्ते में अमीर किसानों और बिचौलियों को अपनी फसल न बेचनी पड़े और किसी भी समर्थन मूल्य का फायदा उन्हें पहुंचे। साथ ही, इससे तमाम मेहनत करने वाली जनता को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये सस्ता खाद्यान्न मुहैया किया जा सकता है।
यह घोषणा ऐसे समय पर की गई है जब कई महत्वपूर्ण राज्यों में आने वाले कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं। इस घटनाक्रम से साफ दिखता है कि किसान आंदोलन द्वारा बने दबाव के कारण सरकार ने यह फैसला लिया है। परंतु, सरकार द्वारा लिए गए यह कदम बहुत देर में लिए गए हैं और बहुत सीमित हैं। इनके द्वारा जनता को सरकार की असली मंशा के बारे में बरगलाया नहीं जा सकता। वहीं केवाईएस किसान आंदोलन की बड़ी जीत की बधाई देते हुए सभी से अपील करता है कि छोटे-सीमांत किसानों और खेत मजदूरों के ज़रूरी मुद्दों को लेकर संघर्ष तेज करें।