उत्तराखंड: दलित भोजन माता वाले विवाद का अंत तो हो गया, लेकिन दलितों को अछूत मानने वाली मानसिकता का अंत कब होगा?

उत्तराखंड: दलित भोजन माता वाले विवाद का अंत तो हो गया, लेकिन दलितों को अछूत मानने वाली मानसिकता का अंत कब होगा? | NDD News

चंपावत: सूखीढांग जीआईसी स्कूल में भोजन माता को लेकर 18 दिसंबर, शनिवार से शुरू हुए अछूत वाले विवाद का अब अंत हो गया, और सामान्य जाति और दलित छात्रों ने एक साथ भोजन करके सामाजिक सौहार्द्र का प्रदर्शन किया।

बता दें कि चंपावत जिले का सूखीढांग जीआईसी स्कूल पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा में था। यहां सामान्य जाति के बच्चों ने 18 दिसंबर, शनिवार को दलित भोजन माता के हाथ से बना खाना खाने से इनकार कर दिया था। इस विरोध के चलते एससी भोजन माता को हटाकर स्कूल में सवर्ण भोजन माता को काम पर रख लिया गया। इसे लेकर दलित समुदाय के बच्चों ने भी सवर्ण भोजन माता के हाथों बना खाना खाने से इनकार कर दिया था।

यह मामला इतना बढ़ गया था कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को इसे संज्ञान लेने पर मजबूर होना पड़ा। तो वहीं आम आदमी पार्टी ने भोजन माता को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में नौकरी का न्यौता देकर मामले को राजनीतिक रंग दे दिया था।

जिसके बाद प्रशासन भी हरकत में आ गया और दोनों वर्गों के बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता से बातचीत करके विवाद को सुलझा लिया। इसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने स्कूल के सभी 66 छात्रों के साथ मिलकर दलित भोजन माता के हाथ का बना खाना खाकर सामाजिक सौहार्द्र का प्रदर्शन किया।

इस समस्या को तत्काल सुलझाया गया हैं, लेकिन उन बच्चों के दिमाग से दलितों को अछूत मानने वाली मानसिकता का विनाश कैसे होगा? यह सोचने की जरुरत है। आपकी क्या राय है? अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं।

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