नई दिल्ली: क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) ने गुरुवार को दिल्ली स्थित बिहार भवन पर, और हरियाणा स्थित जींद में रेलवे भर्ती बोर्ड गैर-तकनीकी लोकप्रिय श्रेणियों (आरआरबी-एनटीपीसी) की परीक्षा के परिणाम में धांधली और छात्रों के आंदोलन के पुलिसिया दमन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
प्रदर्शन कर रहे युवाओं ने आरोप लगाया कि आंदोलनरत छात्रों से बातचीत कर उनकी समस्या का निवारण करने की बजाय सरकार ने पुलिस बल का प्रयोग कर आंदोलनकारियों पर बर्बर हमले किए। सरकार ने आंदोलनरत छात्रों के खिलाफ पुलिस केस दर्ज करने और उन्हें रेलवे में नौकरी से ब्लैकलिस्ट करने की धमकियां भी दी हैं।
बता दें कि आंदोलन के तेज होने के बाद सरकार ने छात्रों की समस्याओं के निवारण ने लिए एक कमिटी का गठन किया है। केवाईएस ने बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार और केंद्रीय रेल मंत्री के इस्तीफे की भी मांग की है।
ज्ञात हो कि रेलवे में क्लर्क, गार्ड से लेकर स्टेशन मास्टर आदि विभिन्न पदों के लिए आरआरबी-एनटीपीसी की परीक्षाएं आयोजित की गई थीं। इन नौकरियों को लेवल 1 से लेवल 6 तक की श्रेणियों में बांटा गया है। जबकि कुछ स्तरों के लिए केवल 10+2 योग्यता की आवश्यकता है, वहीं अन्य स्तरों में केवल स्नातक ही नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं। अब, उम्मीदवारों द्वारा परीक्षाओं पर उच्च योग्यता वाले उम्मीदवारों के पक्ष में व्यापक हेराफ़ेरी और भेदभाव का आरोप लगाया जा रहा है, क्योंकि कम योग्यता वाली नौकरियों के लिए उच्च शैक्षिक योग्यता वाले प्रत्यशियों को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई थी। इसके चलते, कम योग्यता वाले उम्मीदवारों को संबंधित स्तरों में नौकरियों में नुकसान होगा और उन्हें नौकरी की दौड़ से बाहर निकाल दिया जाएगा। यह भी गौर करने वाली बात है कि बेरोजगारी दर, जैसा कि कई रिपोर्टों में भी दिखाया गया है, देश में आज के समय में अपने चरम पर है। ऐसी भयंकर बेरोजगारी के कारण, बेरोजगार युवा लाखों और करोड़ों में केवल मुट्ठी-भर नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, आरआरबी-एनटीपीसी परीक्षा के लिए लगभग 1.25 करोड़ युवाओं ने केवल 35,000 नौकरियों के लिए आवेदन किया था। इसका मतलब यह है हर एक सीट के लिए लगभग 357 उम्मीदवार प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।
यह समस्या नीचे की ओर दबाव बनाने का काम करती है। जहां हर उम्मीदवार अपनी शैक्षिक योग्यता से कम योग्यता की मांग रखने वाले पदों के लिए आवेदन कर रहा है, ऐसे में तुलनात्मक रूप से और कम योग्यता रखने वाले प्रत्याशियों के लिए अपनी योग्यता के अनुरूप नौकरियां ढूंढना और मुश्किल हो जाता है। आज नौकरी बाजार में हर तरफ बेहतर शिक्षित युवाओं को कम योग्यता वाली नौकरियाँ करते देखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, अंग्रेजी बोल पाने वाले युवाओं को उच्च स्तर के रेस्तरां व चाय की दुकानों या बड़ी दुकानों में सामान बेचते पाया जाना आम हो चुका है। ऐसी घटनाएं नीचे की ओर दबाव बढ़ाती हैं, जिससे कम-कौशल नौकरियों के लिए अति-योग्य उम्मीदवार आवेदन कर रहे हैं, और इस कारण कम-कौशल युवाओं को नौकरी मिलना बेहद मुश्किल हो रहा है।
रिपोर्टों के अनुसार, 2016 में भारत की कामकाजी आयु आबादी का केवल 42 प्रतिशत हिस्सा ही कार्यरत था। 2017 में यह आंकड़ा 41 फीसदी पर गिर गया, फिर 2018-2019 में 40 फीसदी, 2019 में 39 फीसदी और अब यह आंकडा केवल 36 फीसदी हो गया है। रिपोर्टों में इस बात पर जोर दिया गया है कि पिछले पांच वर्षों में कामकाजी आबादी में 7 करोड़ की वृद्धि के बावजूद, आज कम संख्या में लोगों को नौकरियाँ मिल रही हैं। स्थिति यह है कि चपरासी, माली, आदि नौकरियों के लिए पीएचडी किये हुए छात्र भी आवेदन कर रहे हैं।
यह 'स्किल इंडिया' जैसे भटकाऊ योजनाओं के खोखलेपन को सामने लाता है, जो नौकरियों की कमी के मुद्दे को संबोधित करने के बजाय युवाओं पर ही पर्याप्त कौशल नहीं रखने का दोष डालती हैं। जहाँ एक तरफ कौशल सिखाने के नाम पर ज़्यादातर युवाओं को निम्न श्रेणी के व्यावसायिक (वोकेशनल) पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित किया जाता है, वहीं मध्यम वर्ग युवाओं को उच्च-शिक्षा में मौजूद कुछ सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाता है।
इस संकट के लिए राज्य और केंद्र सरकारें पूरी तरह से दोषी हैं। नौकरियां बढाने के बजाय, कुछ लोगों का अत्यधिक शोषण किया जा रहा है और अब कार्यकाल की अवधि को 12 घंटे कर इस शोषण प्रणाली को वैध करने की कवायद की जा रही है। सभी क्षेत्रों में कुछ लोगों को ज्यादा काम करने पर मजबूर किया जाता है, जिससे उन पर हो रहे शोषण में तो वृद्धि होती ही है, साथ ही कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा बेरोजगार रह जाता है। इस प्रकार से आरआरबी-एनटीपीसी उम्मीदवारों का मुद्दा पूरी व्यवस्था में समस्या को इंगित करता है, जिसमें सरकारों की भारी बेरोजगारी की नीतियों से केवल निचले दबाव की घटना को बढ़ावा देती है। यह स्पष्ट रूप से एक संरचनात्मक संकट और वर्तमान सरकार की नीतियों विफलता है।
केवाईएस मांग करता है कि छात्रों की सब समस्याओं का निवारण किया जाए, आंदोलनरत छात्रों के खिलाफ किए गए सभी पुलिस केस तुरंत वापस लिए जाएं, परीक्षा अपने नियत समय से कराई जाएं जिससे छात्रों को नुकसान न हो, और आंदोलनकारियों पर हमले करने वाले सभी पुलिस अधिकारियों और अन्य अधिकारियों पर सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए। साथ ही, सीटों की संख्या बढ़ाई जाए और उच्च योग्यता प्राप्त छात्रों द्वारा काम योग्यता वाली नौकरियों के लिए आवेदन करने से खड़ी होने वाली समस्या का निवारण किया जाए।
ज्ञात हो कि रेलवे में क्लर्क, गार्ड से लेकर स्टेशन मास्टर आदि विभिन्न पदों के लिए आरआरबी-एनटीपीसी की परीक्षाएं आयोजित की गई थीं। इन नौकरियों को लेवल 1 से लेवल 6 तक की श्रेणियों में बांटा गया है। जबकि कुछ स्तरों के लिए केवल 10+2 योग्यता की आवश्यकता है, वहीं अन्य स्तरों में केवल स्नातक ही नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं। अब, उम्मीदवारों द्वारा परीक्षाओं पर उच्च योग्यता वाले उम्मीदवारों के पक्ष में व्यापक हेराफ़ेरी और भेदभाव का आरोप लगाया जा रहा है, क्योंकि कम योग्यता वाली नौकरियों के लिए उच्च शैक्षिक योग्यता वाले प्रत्यशियों को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई थी। इसके चलते, कम योग्यता वाले उम्मीदवारों को संबंधित स्तरों में नौकरियों में नुकसान होगा और उन्हें नौकरी की दौड़ से बाहर निकाल दिया जाएगा। यह भी गौर करने वाली बात है कि बेरोजगारी दर, जैसा कि कई रिपोर्टों में भी दिखाया गया है, देश में आज के समय में अपने चरम पर है। ऐसी भयंकर बेरोजगारी के कारण, बेरोजगार युवा लाखों और करोड़ों में केवल मुट्ठी-भर नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, आरआरबी-एनटीपीसी परीक्षा के लिए लगभग 1.25 करोड़ युवाओं ने केवल 35,000 नौकरियों के लिए आवेदन किया था। इसका मतलब यह है हर एक सीट के लिए लगभग 357 उम्मीदवार प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।
यह समस्या नीचे की ओर दबाव बनाने का काम करती है। जहां हर उम्मीदवार अपनी शैक्षिक योग्यता से कम योग्यता की मांग रखने वाले पदों के लिए आवेदन कर रहा है, ऐसे में तुलनात्मक रूप से और कम योग्यता रखने वाले प्रत्याशियों के लिए अपनी योग्यता के अनुरूप नौकरियां ढूंढना और मुश्किल हो जाता है। आज नौकरी बाजार में हर तरफ बेहतर शिक्षित युवाओं को कम योग्यता वाली नौकरियाँ करते देखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, अंग्रेजी बोल पाने वाले युवाओं को उच्च स्तर के रेस्तरां व चाय की दुकानों या बड़ी दुकानों में सामान बेचते पाया जाना आम हो चुका है। ऐसी घटनाएं नीचे की ओर दबाव बढ़ाती हैं, जिससे कम-कौशल नौकरियों के लिए अति-योग्य उम्मीदवार आवेदन कर रहे हैं, और इस कारण कम-कौशल युवाओं को नौकरी मिलना बेहद मुश्किल हो रहा है।
रिपोर्टों के अनुसार, 2016 में भारत की कामकाजी आयु आबादी का केवल 42 प्रतिशत हिस्सा ही कार्यरत था। 2017 में यह आंकड़ा 41 फीसदी पर गिर गया, फिर 2018-2019 में 40 फीसदी, 2019 में 39 फीसदी और अब यह आंकडा केवल 36 फीसदी हो गया है। रिपोर्टों में इस बात पर जोर दिया गया है कि पिछले पांच वर्षों में कामकाजी आबादी में 7 करोड़ की वृद्धि के बावजूद, आज कम संख्या में लोगों को नौकरियाँ मिल रही हैं। स्थिति यह है कि चपरासी, माली, आदि नौकरियों के लिए पीएचडी किये हुए छात्र भी आवेदन कर रहे हैं।
यह 'स्किल इंडिया' जैसे भटकाऊ योजनाओं के खोखलेपन को सामने लाता है, जो नौकरियों की कमी के मुद्दे को संबोधित करने के बजाय युवाओं पर ही पर्याप्त कौशल नहीं रखने का दोष डालती हैं। जहाँ एक तरफ कौशल सिखाने के नाम पर ज़्यादातर युवाओं को निम्न श्रेणी के व्यावसायिक (वोकेशनल) पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित किया जाता है, वहीं मध्यम वर्ग युवाओं को उच्च-शिक्षा में मौजूद कुछ सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाता है।
इस संकट के लिए राज्य और केंद्र सरकारें पूरी तरह से दोषी हैं। नौकरियां बढाने के बजाय, कुछ लोगों का अत्यधिक शोषण किया जा रहा है और अब कार्यकाल की अवधि को 12 घंटे कर इस शोषण प्रणाली को वैध करने की कवायद की जा रही है। सभी क्षेत्रों में कुछ लोगों को ज्यादा काम करने पर मजबूर किया जाता है, जिससे उन पर हो रहे शोषण में तो वृद्धि होती ही है, साथ ही कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा बेरोजगार रह जाता है। इस प्रकार से आरआरबी-एनटीपीसी उम्मीदवारों का मुद्दा पूरी व्यवस्था में समस्या को इंगित करता है, जिसमें सरकारों की भारी बेरोजगारी की नीतियों से केवल निचले दबाव की घटना को बढ़ावा देती है। यह स्पष्ट रूप से एक संरचनात्मक संकट और वर्तमान सरकार की नीतियों विफलता है।
केवाईएस मांग करता है कि छात्रों की सब समस्याओं का निवारण किया जाए, आंदोलनरत छात्रों के खिलाफ किए गए सभी पुलिस केस तुरंत वापस लिए जाएं, परीक्षा अपने नियत समय से कराई जाएं जिससे छात्रों को नुकसान न हो, और आंदोलनकारियों पर हमले करने वाले सभी पुलिस अधिकारियों और अन्य अधिकारियों पर सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए। साथ ही, सीटों की संख्या बढ़ाई जाए और उच्च योग्यता प्राप्त छात्रों द्वारा काम योग्यता वाली नौकरियों के लिए आवेदन करने से खड़ी होने वाली समस्या का निवारण किया जाए।