ज्ञात हो कि पिछले साल यह कानून लोकसभा में भाजपा सरकार द्वारा मनमाने तरीके से पारित किये गए थे।
इसी तरह, मोदी सरकार ने पिछले साल आपदा का फायदा उठाते हुए कई ऐसी जन-विरोधी नीतियों को पारित किया जैसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति, नई श्रम संहिताएँ, इत्यादि।
साथ ही, आज मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही के कारण देश एक भयंकर स्वास्थ्य आपदा से गुज़र रहा है, जिसमें रोज़ लाखों लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, और हजारों की मौत हो रही है।
ज्ञात हो कि इन कृषि कानूनों के खिलाफ देश-भर में विरोध के बावजूद पारित किया गया था।
इन कानूनों द्वारा न सिर्फ छोटे-सीमान्त किसान पूरी तरह से बर्बाद हो जायेंगे, बल्कि खेतिहर और शहरी मजदूर को भी इनसे नुक्सान होगा, क्योंकि इनसे खाद्य उत्पादों के दाम भयंकर रूप से बढ़ेंगे।
इन जन-विरोधी कृषि कानूनों की तरह ही नई श्रम संहिताओं मजदूरों के ऐतिहासिक संघर्षों द्वारा हासिल किये गए अधिकारों को ख़त्म कर देंगी।
इन जन-विरोधी कृषि कानूनों की तरह ही नई श्रम संहिताओं मजदूरों के ऐतिहासिक संघर्षों द्वारा हासिल किये गए अधिकारों को ख़त्म कर देंगी।
यही नहीं, नई शिक्षा नीति निजीकरण को बढ़ावा देकर पिछड़े और वंचित समुदायों से आने वाले छात्र-युवाओं के लिए औपचारिक उच्च शिक्षा के सारे रास्ते बंद कर देगी।
किसान आन्दोलन ने सरकार के निजीकरण करने और कॉर्पोरेटो को खुली छूट देने के एजेंडे को बड़ा धक्का दिया है, और इस कारण सरकार ने आन्दोलन को बल प्रयोग से दबाने की भरसक कोशिशों की हैं।
किसानों के साथ वार्ताएं कर समाधान निकालने की जगह सरकार ने प्रदर्शनकर्ताओं को देशव्यापी स्वास्थ्य संकट के दौरान भी प्रदर्शन जारी रखने को मजबूर किया है, क्योंकि ये उनकी जीविका और भरण पोषण का सवाल है।
आज जब देश की लोक सभा और राज्य सभा से तीन कृषि कानून पारित हो चुके हैं और सरकार इनको रद्द न करने को लेकर पूरी तरह से अड़ियल रवैया अख़्तियार किए हुई है, तब ज़रूरत है कि देश के लोगों की असली सभाएँ, ग्राम सभाएँ इन कानूनों के खिलाफ खड़ी हों।
आज जब देश की लोक सभा और राज्य सभा से तीन कृषि कानून पारित हो चुके हैं और सरकार इनको रद्द न करने को लेकर पूरी तरह से अड़ियल रवैया अख़्तियार किए हुई है, तब ज़रूरत है कि देश के लोगों की असली सभाएँ, ग्राम सभाएँ इन कानूनों के खिलाफ खड़ी हों।
देश-भर की ग्राम सभाएं जो कि सभी लोगों द्वारा प्रत्यक्ष तौर फैसले लेने के लिए अधिकृत हैं, उनको इन काले क़ानूनों को रद्द घोषित करना चाहिए।
जब देश की लोक सभा और राज्य सभा में बैठे जनता के प्रतिनिधि पूँजीपतियों के पक्ष में कानूनों को बना रहे हैं, तब देश के लोगों की ग्राम सभाओं को ही इन क़ानूनों पर बहस कर इन्हें रद्द घोषित करना होगा।
केवाईएस किसान आंदोलन का समर्थन करता है और मांग करता है कि केंद्र सरकार तुरंत इन कानूनों को वापस ले, और ऐसे जन-विरोधी कानून लाने और किसान आंदोलन को डराने-धमकाने के लिए जनता से माफी मांगे।
केवाईएस किसान आंदोलन का समर्थन करता है और मांग करता है कि केंद्र सरकार तुरंत इन कानूनों को वापस ले, और ऐसे जन-विरोधी कानून लाने और किसान आंदोलन को डराने-धमकाने के लिए जनता से माफी मांगे।
केवाईएस की मांग है कि कृषि उपज को सभी किसानों से अनिवार्य तौर पर सरकार खरीदे और एक सशक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) बनाए।
मौजूदा स्वास्थ्य संकट से देश को उबारने के लिए, सरकार सभी बड़े निजी अस्पतालों और वैक्सीन कंपनियों का अधिग्रहण करे और जन स्वास्थ्य के लिए जरूरी सभी वैक्सीन और दवाइयों को खुद बनाए, और जन स्वस्थ्य प्रणाली को मजबूत करे।
केवाईएस कृषि कानूनों, नई श्रम संहिताओं, नई शिक्षा नीति और निजीकरण के खिलाफ आंदोलन तेज़ करने का प्रण लेता है।
साथ ही, सरकार पर दबाव बनाने के लिए देश के लोगों की ग्राम सभाओं द्वारा इन काले क़ानूनों को रद्द घोषित किए जाने की केवाईएस मांग करता है।
केवाईएस किसान आंदोलन के साथ खड़ा है और देश की व्यापक जनता से अपील करता है कि इस आंदोलन का समर्थन करें जिससे न सिर्फ किसानों को उनकी फसल का सही दाम बल्कि व्यापक मेहनतकश आबादी को सस्ता खाद्यान्न मुहैया हो सके।