कामगारों को न्यूनतम आय सुनिश्चित करने की जगह, उद्योगों, यात्रा एजेंसियों और विदेशी सैलानियों के लिए बड़े फायदे किए गए घोषित?

क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) ने की केंद्र सरकार द्वारा घोषित आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के नाम पर सिर्फ जुमलेबाजी की कड़ी भर्त्सना।


 

केवाईएस का कहना है कि "कल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज महज़ एक धोखा है, जिसे सिर्फ सरकार की धूमिल छवि सुधारने के लिए घोषित किया गया है। एक तरीके से यह पैकेज सिर्फ जुमलेबाजी है, जिसमें केंद्र सरकार को महारत हासिल है। पैकेज का अधिकतर हिस्सा पांच साल के दौरान ऋण देने के रूप में है जिसका मेहनतकश आबादी पर कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष फायदा नहीं है। इस पैकेज में जनता के असली मुद्दों की बात तक नहीं की गई है, बल्कि सरकार द्वारा खुद की पीठ थपथपाते हुए पुरानी योजनाओं को ही पुनः घोषित किया गया है।

लॉकडाउन के बोझ तले दबी जनता की जरूरतों को मद्देनजर रखने के बजाय एमएसएमई के लिए पैकेज घोषित किए गए। सरकार ने उद्यमियों और व्यवसायियों के लिए तो बड़ी घोषणाएँ कीं, लेकिन अर्थव्यवस्था को बनाने वाले मजदूरों के प्रति उसकी कोई चिंता नहीं है। लघु, छोटे एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) के लिए घोषित फायदों में इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) के तहत लिमिट को 50 प्रतिशत बढ़ा कर 4.5 लाख करोड़ रुपए तक कर दिया गया है, पर मजदूरों को बचाने के लिए कोई योजनाएं नहीं लाई गई हैं। यह ज्ञात हो कि एमएसएमई में श्रम कानूनों को लगभग नहीं के बराबर लागू किया जाता है और इसलिए ये संस्थान बिना किसी अंकुश के मजदूरों को अतिशोषित करते हैं। वित्त मंत्री का भाषण एमएसएमई पर ही केंद्रित था, हालांकि एमएसएमई में काम करने वाले या अन्य मजदूरों की कोई चर्चा नहीं की गई।"

ज्ञात हो कि वित्त मंत्री ने 1.1 लाख करोड़ रुपए की लोन गारंटी स्कीम घोषित की है जिसमें से 50,00 करोड़ रुपए की लोन गारंटी स्वास्थ्य क्षेत्र में दी गई है, जिसमें 50% स्वास्थ्य संबंधी विस्तार के लिए है और 75% नई परियोजनाओं के लिए। साथ ही ऑन-साइट ऑक्सीजन प्लांट बनाने के लिए भी रियायती कर का भी प्रावधान है। ऐसे समय में जब देश की जन स्वास्थ्य व्यवस्था को व्यापक स्तर पर बदलने और बेहतर करने की जरूरत है, सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में सांकेतिक कर देने जैसे प्रावधान ला रही है।

उन्होंने कहा "जब पूरी जनता को बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरत है, तब हॉस्पिटल, डॉक्टर, नर्स, उपचार केंद्र इत्यादि की संख्या तेजी से बढ़ने और संकट घरेलू उत्पाद का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा जन स्वास्थ्य पर लगाने की आवश्यकता है। यह सब कर के जनता को राहत देने की जगह सरकार केवल अपनी छवि सुधारने का प्रयास कर रही है। बड़े पैमाने पर चिकित्सीय ऑक्सीजन उत्पादन को बढ़ाने के बजाय, निजी अस्पतालों को इसके लिए ऋण प्रदान करने का यह उपाय, लोगों के प्रति सरकार की उदासीनता और निजी अस्पतालों की लॉबी के साथ उसके गठजोड़ को उजागर करता है। इन बड़े निजी अस्पतालों के चलते ही मेहनतकश जनता को इलाज से वंचित होना पड़ता है। ऐसे में समय की मांग है कि सभी को बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए ऐसे बड़े निजी अस्पतालों का सरकारी अधिग्रहण किया जाए। इसके अलावा, यात्रा और पर्यटन क्षेत्र को पैकेज का एक बड़ा हिस्सा मिला है। घोषणा के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए वीजा जारी करने की पुनः-शुरूआत होने के बाद, पहले पांच लाख पर्यटकों को मुफ्त में वीजा जारी किया जाएगा। इसके अलावा, यात्रा और पर्यटन एजेंसियों को 10 लाख रूपये तक और पंजीकृत पर्यटक गाइड को एक लाख रूपये तक का ऋण 100 प्रतिशत गारंटी के साथ प्रदान किया जाएगा। इन घोषणाओं से देश की लगभग पूरी मेहनतकश आबादी लाभहीन रहेगी। ऐसा लगता है कि सरकार मेहनतकश जनता की जमीनी और जरूरी मुद्दों को दूर करने के बजाय यात्रा एजेंसियों और विदेशी सैलानियों को लाभ देने में लगी है। यह पूरा पैकेज और ‘आत्म-निर्भर भारत’ जिसके तहत यह लाया गया, उसकी असलियत जनता के सामने बेनकाब हो चुकी है। वित्त मंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार की प्राथमिकता में कॉर्पोरेट, व्यापारी, उद्यमी, विदेशी पर्यटक हैं, न कि मजदूर और कामकाजी जनता। इस प्रकार, 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' और आत्मनिर्भरता की सारी बातें, इस संकट के दौरान मजदूरों के लिए कुछ न करने के संबंध में जुमलेबाजी है, जबकि सरकार उद्योगों, कार्पोरेटों और बड़े प्राइवेट अस्पतालों को बचाने में व्यस्त है। इस अभियान का उद्देश्य सिर्फ मजदूरों को उनके ही भरोसे छोड़ देना है, क्योंकि केंद्र सरकार ने इस संकट के समय उनका साथ देने की अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है। आज जब देश के ट्रेड यूनियन और मजदूर मूलभूत न्यूनतम आय, बिलकुल बेहतर जन-स्वास्थ्य सुविधाएँ, किराये पर रोक जैसे ठोस कदमों की मांग कर रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार उद्यमियों को खुश करने के लिए इन मुद्दों की पूरी तरह से अनदेखी कर रही है। "

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