यूनियन ने अलग-अलग माध्यमो से घरेलू कामगारों तक पहुँच कर उन्हें मौजूदा भारतीय श्रम कानूनों में व्याप्त कमियों के बारे में बताया जो अभी भी घरेलू कामगारों की कामगार के रूप में पहचान नहीं करते है। ज्ञात हो कि केंद्र और राज्य सरकारों की इन कामगारों के प्रति उदासीनता देशव्यापी लॉकडाउन/तालाबंदी की अवधि में और भी उजागर हुई, जब घरेलू कामगारों को गंभीर समस्याओं से जूझना पड़ा। इसके साथ ही, महामारी, तालाबंदी और तालाबंदी के खुलने के बाद भी इन कामगारों के साथ बनी रही समस्याओं को उजागर कर यूनियन भारत सरकार से एक विशेष राहत पैकेज की मांग करता है ताकि इस संकट के दौर में कर्ज में डूबे घरेलू कामगारों की परेशानियों को कम किया जा सके।
घरेलू कामगारों की कामगार के तौर पर पहचान ही उन्हें श्रम कानूनों के तहत बराबर सुरक्षा प्रदान कर सकती है। ज्ञात हो कि भारत में घरेलू कामगार के तौर पर कार्यरत महिलाओं का बहुसंख्यक हिस्सा दलित, आदिवासी, गरीब और निम्न तबके से आता है| विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार देश में करीब 2.5 करोड़ महिलाएं घरेलू कामगार के तौर पर कार्यरत हैं। यह कृषि और निर्माण कार्य के बाद कार्यरत महिलाओं की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है जहां पर मजदूर वर्ग की महिलाओं की बड़ी भागीदारी को साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। इसके बावजूद भी देश के कुछ राज्यों को छोड़कर बाकी राज्यों में इन्हें कानूनी तौर कामगार नहीं माना जाता है। 2011 में अंतराष्ट्रीय श्रम संघ (ILO) के अधिवेशन 189 को (घरेलू कामगारों को बेहतर काम की स्थितियाँ उपलब्ध करवाने के संबंध में) भारत में अभी तक लागू नहीं किया गया है। इसकी वजह से भारत आईएलओ को इस बड़े कार्यबल के विषय में रिपोर्ट देने की अपनी औपचारिक प्रतिबद्धता से बचता रहा है। घरेलू कामगारों को कामगारों का दर्जा देने की जगह, केंद्र सरकार ने पिछले साल भारी विरोध के बावजूद चार नई श्रम संहिताओं को पारित किया, जिससे असंगठित क्षेत्र के कामगारों (जैसे घरेलू कामगार) की काम से संबंधित परेशानियां बढ़ेंगी।
अन्य कई देशों की तरह भारत में भी कामगारों के काम के घंटे निर्धारित नहीं हैं, न ही उन्हें साप्ताहिक छुट्टी का प्रावधान है, न ही उन्हें न्यूनतम मजदूरी मिलती है और न ही सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान हैं। मौजूदा स्थिति में जब कोरोना और तालाबंदी से सब क्षेत्रों के श्रमिकों को जीवन और जीविका का संकट झेलना पड़ रहा है,घरेलू कामगारों पर इसका बहुत दुष्प्रभाव पड़ा है। सरकार की अनदेखी के कारण घरेलू कामगारों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस के अवसर पर जी.के.यू. मांग करता है कि भारतीय सरकार द्वारा 189 के अधिवेशन का अनुसमर्थन किया जाए, और घरेलू कामगारों को देश के सभी बड़े श्रम कानूनों में सम्मिलित लिया जाए। साथ ही, लॉकडाउन में काम न होने के कारण कर्ज में फंसे इन घरेलू कामगारों के लिए भारतीय सरकार द्वारा एक विशेष राहत पैकेज की घोषणा किए जाने की मांग करता है।