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संगठन से कुलदीप ने बताया कि चिलेवाल गांव की आबादी में मजहबी सिखों की आबादी है, जो भाखड़ा नंगल बांध के निर्माण के बाद यहां जमीन आवंटित किए गए ग्रामीणों के साथ गांव में बस गए थे। उनके पास इस गांव के सभी कागजात उनके पास है। लेकिन अचानक प्रशासन ने उन्हें 26 नवंबर तक अपने मकान खाली करने को कहा। वहां के परिवारों ने इस फैसले के खिलाफ धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया है। इस गांव की बड़ी आबादी में ठाकुर हैं, जो मजहबी सिखों के साथ भेदभाव करते रहे हैं। जिस जमीन पर इन दिहाड़ी मजदूरों के घर बने हैं, ठाकुर समुदाय के लोग उस पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई है।
संगठन के सदस्य दिनेश ने कहा कि एक तरफ बीजेपी सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना का ढिंढोरा पीट रही है वहीं दूसरी तरफ मजदूर वर्ग के लोगों से उनके मकान छीन रही है। ऐसे में हम सरकार से निम्मलिखित मांग करते हैं कि प्रशासन मकान तोड़ने के अपने फैसले को जल्द से जल्द वापिस ले। जब तक पुनर्वास की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक मकानों को तोड़ा नहीं जाना चाहिए। सभी भूमिहीन मजदूरों और गरीब किसानों को भूमि आबंटित की जाए और प्रत्येक निवासी को 10 लाख रुपये का अनुदान दी जाए। अतः इन दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को बेघर न किया जाए और मानवीय आधार पर उनके घरों को न गिराया जाए जो उन्होंने 50 वर्षों की अवधि में बनाए हैं अन्यथा संगठन अन्य जन संगठनों के साथ मिलकर आंदोलन को तेज करेगा।