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आजादी के 75 सालों बाद भी देश में छुआछूत कायम है। वहीं आधुनिक कहा जाने वाला गुजरात भी इससे अछूता नहीं है। ताजा मामला गुजरात के जामनगर में सरपदड गांव का है। राजकोट से 21 किमी दूर इस गांव में पांच आंगनवाड़ी हैं, जिनमें एक में सिर्फ दलित समाज के बच्चे पढ़ते हैं, जबकि शेष चार में अन्य तमाम समाज और जाति के बच्चे पढ़ते हैं।
गांव की जनसंख्या लगभग 4500 है। वहीं, दलित और अन्य समाज का आंगनवाड़ी केंद्र करीब 50 मीटर की दूरी पर ही है। फिर भी यहां बच्चे अलग-अलग पढ़ते हैं।
आंगनवाड़ी में पिछले 14 साल से बतौर हेल्पर काम कर रही विजयाबेन परमार ने कहा कि गांव में 5 आंगनवाड़ी में से क्रमांक-2 में सिर्फ दलित समाज के बच्चे ही पढ़ते हैं। इस आंगनवाड़ी के पिछले हिस्से में दलित समाज की बस्ती है, इसलिए भी यहां दलित समाज के बच्चे आते हैं। यहां अन्य समाज के बच्चे आंगनवाड़ी में नहीं आते हैं।
वहीं, आंगनवाड़ी 5 की सदस्य प्रज्ञाबेन राणीपा ने बताया कि दलित समाज के बच्चों के लिए किसी भी आंगनवाड़ी में रोक-टोक नहीं है, लेकिन वे अपने बच्चों को यहां नहीं भेजते।
इस बारे में डीडीओ देव चौधरी ने कहा कि यदि ऐसा है तो यह गलत है। भेदभाव किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है। सबसे पहले इस पूरे मामले की जांच की जाएगी।