
केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक (Minority) छात्रों को दी जाने वाली मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (Maulana Azad National Fellowship- MANF) को बंद करने का फैसला लिया है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने गुरुवार को लोकसभा में इसकी जानकारी दी जिसमें उन्होंने कहा कि यह योजना दूसरी योजनाओं को ओवरलैप कर रही थी, इसलिए सरकार ने इसे बंद करने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि इस योजना के तहत अल्पसंख्यक छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए 25,000 से 30,000 प्रति माह दिया जाता था।
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में कांग्रेस सांसद टीएन प्रतापन ने मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को लेकर सवाल पूछा था। जिसके जवाब में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि MANF योजना को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा दिया जाता था। UGC के आकंड़ों के मुताबिक, 2014-15 और 2021-22 के बीच 6,722 छात्रों को 738.85 करोड़ रुपये की फैलोशिप दी गई थी।
उन्होंने कहा कि MANF योजना केंद्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के लिए कई फेलोशिप योजनाए ओवरलैप कर रही थी। इसलिए सरकार ने 2023 से MANF योजना को बंद करने का फैसला लिया है। सरकार के इस फैसले का टीएम प्रतापन ने विरोध किया। उन्होंने कहा, ‘यह अन्याय है। सरकार के इस कदम से कई शोधकर्ता आगे अध्ययन करने का मौका खो देंगे।’
कब शुरू हुई थी मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप योजना?
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय (Ministry of Minority Affairs) द्वारा मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप योजना 2009 में शुरू की गई थी। इसके तहत 6 अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों- मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी छात्रों को PhD और M.Phil के लिए सरकार की ओर से 5 साल तक सहायता राशि दी जाती थी। देश में मुसलमानों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने वाली सच्चर कमिटी की सिफारिश के बाद इस योजना को लागू किया गया था।
MANF के तहत कितनी राशि दी जाती थी?
MANF योजना के तहत उन्हीं छात्रों को सहायता राशि दी जाती थी जो साइंस, इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, सोशल साइंस या फिर ह्यूमैनिटी स्ट्रीम में MPhil या PhD कर रहे थे। इसके अंतर्गत JRF के तहत 2 साल के लिए 25,000 रुपये प्रति माह और SRF के तहत 28,000 रुपये प्रति माह की धनराशि मिलती थी।
MANF के तहत इन छात्रों को ही योग्य माना जाता था
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में कांग्रेस सांसद टीएन प्रतापन ने मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को लेकर सवाल पूछा था। जिसके जवाब में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि MANF योजना को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा दिया जाता था। UGC के आकंड़ों के मुताबिक, 2014-15 और 2021-22 के बीच 6,722 छात्रों को 738.85 करोड़ रुपये की फैलोशिप दी गई थी।
उन्होंने कहा कि MANF योजना केंद्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के लिए कई फेलोशिप योजनाए ओवरलैप कर रही थी। इसलिए सरकार ने 2023 से MANF योजना को बंद करने का फैसला लिया है। सरकार के इस फैसले का टीएम प्रतापन ने विरोध किया। उन्होंने कहा, ‘यह अन्याय है। सरकार के इस कदम से कई शोधकर्ता आगे अध्ययन करने का मौका खो देंगे।’
कब शुरू हुई थी मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप योजना?
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय (Ministry of Minority Affairs) द्वारा मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप योजना 2009 में शुरू की गई थी। इसके तहत 6 अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों- मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी छात्रों को PhD और M.Phil के लिए सरकार की ओर से 5 साल तक सहायता राशि दी जाती थी। देश में मुसलमानों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने वाली सच्चर कमिटी की सिफारिश के बाद इस योजना को लागू किया गया था।
MANF के तहत कितनी राशि दी जाती थी?
MANF योजना के तहत उन्हीं छात्रों को सहायता राशि दी जाती थी जो साइंस, इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, सोशल साइंस या फिर ह्यूमैनिटी स्ट्रीम में MPhil या PhD कर रहे थे। इसके अंतर्गत JRF के तहत 2 साल के लिए 25,000 रुपये प्रति माह और SRF के तहत 28,000 रुपये प्रति माह की धनराशि मिलती थी।
MANF के तहत इन छात्रों को ही योग्य माना जाता था
- आवेदक को मास्टर्स प्रोग्राम में कम से कम 55% अंक हासिल होने चाहिए।
- आवेदक के पास मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध या पारसी समुदाय से होना और अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र होना चाहिए था।
- इसके अलावा CSIR-NET/CBSE-NET क्वालीफाई होना चाहिए।
- किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी में M. Phil/PhD कोर्स में दाखिला लिया हो और NET-JRF or UGC परीक्षा पास की हो।
- आवेदकों की फैमिली आय अधिकतम 2.5 लाख प्रति वर्ष होनी चाहिए।