
14 अप्रैल, गुरुवार को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जयंती के अवसर पर, सफाई कामगार यूनियन (एसकेयू) और सफाई कर्मियों ने ठेकाकरण और जाति-व्यवस्था के खिलाफ जन-अभियान की शुरुआत की। वहीं लाखों लोगों ने संसद मार्ग(दिल्ली) पर लगे मेले में बाबा साहेब को श्रद्धांजलि दी।
ज्ञात हो कि बहुसंख्यक दलितों और शोषित उत्पीड़ित वर्गों की आज भी स्थिति बेहद दयनीय और खराब बनी हुई है। दलितों का बड़ा हिस्सा आज भी बेहद शोषणकारी पारंपरिक कामों में लगा है। जिन्हें कहीं और नौकरी मिल भी जाती है, वो भी ठेका प्रथा में काम करने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे उनका शोषण लगातार जारी है। इसके कारण आज भी दलित समुदाय के अधिकतर लोगों को शोषणकारी जाति-व्यवस्था के साए में जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
दलितों के खिलाफ हिंसक अपराध जैसे लिंचिंग, हत्याएं और बलात्कार होना एक आम बात हो गयी है। नेशनल क्राइम्स रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, दलितों के खिलाफ अपराधों में 2020 में 9.4% की वृद्धि दर्ज की गई। शासन द्वारा दबंग जातियों के अपराधियों को बचाने के हर संभव प्रयास किए जाते हैं और अधिकतर मामलों में दलित समुदाय को न्याय नहीं मिलता है।
आज भी, मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथ से मैला ढोने) जैसा अमानवीय कार्य करने के लिए दलित समुदाय मजबूर है जबकि इसे 1993 में गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है। देश में मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान मौतें एक आम सिलसिला बन चुकी हैं, फिर भी सरकार बेशर्मी से संसद में बताती है कि पिछले पांच साल में ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं। दलितों को शिक्षा और समान अवसर से वंचित कर के उन्हें ऐतिहासिक तौर पर सामाजिक-आर्थिक हाशिए पर रखा गया है। आज भी दलित समुदाय में शिक्षा का स्तर बेहद कम है क्योंकि अलग-अलग सरकारों द्वारा निजीकरण के कारण देश में ऐसा सरकारी शिक्षा का ढर्रा नहीं बन पाया जिसमे पिछड़े समुदायों के छात्रों को पढ़ने का मौका मिल सके।
सभी सरकारें और राजनेता दलितों के लिए ऐतिहासिक महत्व रखने वाले दिनों को अपनी वोट की राजनीति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं, मगर वे बहुसंख्यक दलितों को जातिवाद के पुश्तैनी, शोषणकारी श्रम के चक्र से बाहर निकालने में पूरी तरह विफल रहे हैं।
वहीं एसकेयू ने जातिवाद, ब्राह्मणवाद, सामाजिक अन्याय, मैनुअल स्कैवेंजिंग और सफाई के काम में शोषणकारी ठेका प्रथा के खिलाफ आंदोलन तेज करने का प्रण लेता है।